Friday, March 18, 2011

इंसान और कुदरत एक से हो गए

आज भारत के अख़बारों में एक ऐसी खबर है जो मार्मिकता में किसी प्राकृतिक अनावृष्टि, अतिवृष्टि या सुनामी से कम नहीं है, लेकिन फर्क केवल यह है कियह कहर प्रकृति ने नहीं ढाया बल्कि मनुष्य के दिमाग में बैठे हुए शैतान ने ढाया है। और अब दुःख इस बात का है कि ऐसे शैतान रोज़ बेरोक - टोक ज्यादा से ज्यादा इंसानों के दिमाग में बैठते जा रहे हैं । आदमी सोच ही नहीं पाता कि जीवन का अर्थ क्या है, बैठे- बैठे चंद मिनटों में, अपना भी जीवन और दूसरों का भी जीवन नष्ट कर लेता है। मानव अधिकार पर कार्य करने वाले तमाम लोग फिर इन मानवता से छिटके हुए लोगों को बचाने के लिए मैदान में आ जाते हैं पर यह भूल जाते हैं कि जिन लोगों का जीवन इन दैत्य जैसे इंसानों ने ख़त्म कर दिया उनके मानव-अधिकार और न्याय का क्या होगा। क्या प्रकृति यही निर्णय लेगी कि एक दिन सबको मारकर धरती को एक बेजान नक्षत्र की तरह अंतरिक्ष में लटका दे?
ताज़ा घटना यह है। कुछ लुटेरों ने एक वृद्धा के चांदी के आभूषण उसके पैर काटकर चुरा लिए। वे भाग गए। शासन, प्रशासन और कानून उनका कुछ नहीं कर पाए। वृद्धा के परिवार के एक युवक ने ऊँची टंकी से छलांग लगा कर न्याय की गुहार लगाते हुए अपने बदन को आग के हवाले करने के बाद जान दे दी। नीचे खड़ी पुलिस की गाड़ी में बैठे एक अधिकारी को उत्तेजित भीड़ ने घेरकर आग लगा कर मार डाला। अगली सुबह मीडिया ने यह राम कहानी घर- घर पंहुचा दी।
जो न्याय पालिका चालीस साल से लाइलाज बीमारी से जूझ रहे मृत प्राय शरीर को इच्छा मृत्यु की इज़ाज़त नहीं दे सकती अब वह बताये कि वह इन में से किस -किस को क्या- क्या दे सकती है।

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