Wednesday, March 30, 2011

अमेरिका का दर्ज़ा वही है

किसी भी संस्कृति या सभ्यता में मनुष्य भयमुक्त कभी नहीं रहा। वह हर युग में किसी न किसी बात से डरने से नहीं बच पाया।उसे दुनिया-जहान की तमाम तरक्की करते हुए भी कभी यह भरोसा नहीं रहा कि वह किसी दैवी, पारलौकिक शक्ति के बिना रह सकता है। यही कारण है कि उसने हर देश की सीमा में, हर काल में कोई न कोई ईश्वर ज़रूर गढ़ लिया। जब भी उसे लगा कि कहीं कुछ ठीक नहीं हो रहा ,वह इस ईश्वर के सामने हाथ जोड़ कर जा खड़ा हुआ और अपनी तथाकथित विपत्ति से बचने की प्रार्थना करने लगा। भगवानों ने भी तरह-तरह से उसकी सहायता की। इस तरह धर्म और विश्वास पुष्ट होते रहे। इसमें न तो कहीं कुछ गलत है और न ही आश्चर्यजनक। बस, थोड़ी सी दिक्कत तब आयी जब किसी को कोई विपत्ति न रही। ऐसे समय शक्तिशाली मनुष्य या ताकतवर देश भला किसी भी ईश्वर को क्यों याद करे?उसे तो संकटकाल के लिए ही ईजाद किया गया है न ? कष्ट में पड़ा मनुष्य या देश यह रिस्क नहीं ले सकता कि उसका कोई परवरदिगार या रहनुमा न हो । इसी से सम्पन्न देशों को याद किया जाता है। उनसे रिश्ते बनाये जाते हैं। उनसे मदद का व्यवहार दिया और लिया जाता है।इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। हाँ, जो देश या इन्सान अपने आप को अपने पैरों पर खड़ा समझते या समझना चाहते हैं, वे किसी ताकतवर या सर्वशक्तिमान को नहीं मानते। ऐसा तब तक होता है जब तक समय उन्हें कोई सबक न सिखा दे । और हम सब की किस्मत अच्छी है कि कोई भी युग विपत्तियों के बिना ज्यादा दिन नहीं रहता।कभी कभी विपत्तियाँ पैदा करने का काम खुद ईश्वर को करना पड़ता है क्यों की अपना अस्तित्व बचाने की ज़िम्मेदारी भी तो उसी की है।

2 comments:

  1. जैसे "सत्यमेव जयते" भारत का आदर्श वाक्य है वैसे ही अमेरिका का आदर्श वाक्य है "इन गॉड वी ट्रस्ट" अर्थात " हमें ईश्वर (के अस्तित्व, न्याय, कृपा आदि) में (पूर्णॅ) विश्वास है।"

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  2. aapki bat bilkul sahi hai, kintu aajkal dekha ja raha hai ki logon ke aadarsh vaky aur karm vaky alag-alag ho gaye hain, yah bat chinta paida karti hai. jab satya aur bhram ko mila kar darshaya jane lagta hai to desh bhi nuksan uthate hain aur log bhi. kam se kam bharat me to aap dekh sakte hain ki satyamevjayate ka prayog kaise kiya ja raha hai.

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