Wednesday, June 1, 2011

अफ्रीका ,आफरीदी ,अफ़सोस, अफरा-तफरी

'सबकी' 'साऊथ''सचमुच'और 'शाहिद' इन चारों शब्दों को ध्यान से देखिये और फिर ऊपर के शीर्षक के चारों शब्दों के साथ इनका मैच मिलाइए. जैसे उदाहरण के लिए यदि आप समझते हैं कि अफ़सोस के साथ 'सचमुच' लगना चाहिए, तो लिखिए-सचमुच अफ़सोस. 
हमारे प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह 'सचमुच अफ़सोस' की बात है कि बाबा रामदेव लोगों को योग सिखाते-सिखाते अचानक अपना कुलयोग लाखों के पार ले गए. क्षमा कीजिये, प्रधानमंत्री के यह शब्द नहीं थे, यह तो मेरी भाषा में उनकी बात का भावार्थ है. उनका कहना तो यह था कि सचमुच अफ़सोस की बात है कि लोगों की नब्ज़ पहचानने वाले रामदेव सरकार का नजरिया नहीं पहचान पा रहे.उधर अन्ना तो पहले से ही हजारे हैं. एक अखबार ने तो आज लिख भी दिया कि अब दिल्ली में "अन्ना हजारों" हैं. वैसे पुरानी कहावत तो यह है कि बिल्लियाँ दो हो जाने से फायदा हमेशा बन्दर को होता रहा है. फिर भी कोई जंतर-मंतर में बार-बार मंतर फूंकेगा तो भूत कभी न कभी तो भागेगा ही न? सो अफरा-तफरी मचनी स्वाभाविक है, वह भी सबकी. 
हमारे देश के लोग क्रिकेटरों को सर-आँखों पर बैठाते  हैं.वे धोनी और आफरीदी में भी कोई फर्क नहीं करते. पर आफत की बात तो यह है कि आफरीदी अफ्रीका के नहीं, पाकिस्तान के स्टार हैं. इसलिए हमारी जनता का उनसे प्रेम केवल अफसाना बन कर रह जाता है, कभी हकीकत नहीं बनता. अब आप समझ गए होंगे कि अफ्रीका में साम्यवाद क्यों नहीं आता? खैर, अभी हमारी पहली प्राथमिकता अन्ना और बाबा हैं. प्रधानमंत्री दोनों को साथ लेकर प्रयास करें तो तिहाड़ पर मंजिलें चढ़ते-चढ़ते कुतुबमीनार को टक्कर दे सकती हैं, बशर्ते तिहाड़ में मंजिलें चढाने का काम आदर्श सोसाइटी के कर्णधारों को न दिया जाये.       

1 comment:

  1. bahut sakaraatmak soch hai aapki.sahi hai pm ji dono ko saath lekar chalen to baat ban jaaye.par chalna chaahe to na!!

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