Monday, August 15, 2011

सब्जी-मंडी,मछली-बाज़ार,माननीय सरकार और गली के बच्चे

सब्जी-मंडी का एक नियम है,कोई विक्रेता जब बेचने के लिए टोकरे में सब्जी सजाता है,तो वह एक ओर ताज़ा और उम्दा सब्जी रखता है,दूसरी ओर बासी और ख़राब.ताज़ा सब्जी उस तरफ से दिखाई देती है,जिधर से ग्राहक आते हैं.बासी उस तरफ होती है,जिधर से वह तौलता है.आप कितनी भी सावधानी से छाँट कर दीजिये,वह तौलते समय कम-ज्यादा करने के बहाने थोड़ा-बहुत सड़ा-गला मिला ही देता है.महिलाएं इस चालाकी को भांप लेती हैं,और इससे बच जाती हैं,पर पुरुष अक्सर ठगे जाते हैं.बाद में वे अपनी झेंप मिटाने के लिए कहते हैं-तुम सब्जी लेने में बहुत देर लगाती हो.
मछली-बाज़ार का भी एक नियम है,साधारण-छोटी मछलियों वाली औरतें बाज़ार के नुक्कड़ पर बैठती हैं,और ज़ायकेदार बड़ी मछलियों वाली भीतर की ओर.नुक्कड़-वाली इतना शोर मचाती हैं,कि ग्राहक भीतर जा ही नहीं पाए.पारखी ही भीतर जाते हैं और महँगा माल खरीदते हैं.जल्दी-वाले सादा माल ले गुज़रते हैं.
गली के बच्चों के अपने नियम होते हैं.जब उनमे झगड़ा होता है तो वे इतिहास कुरेदने लगते हैं-मैंने परसों तुझे चाकलेट दी थी,ला,वापस लौटा दे मेरी.
सरकार भी कुछ नियम बना लेती है.जब कोई "अन्ना"सामने आता है,इन नियमों की गुलेल चला देती है.सरकार के 'अपनों' के मामले में ये नियम सुरक्षित रखे रहते हैं-ताक पे.सरकार के टोकरे में एक तरफ अलीबाबा होते हैं तो दूसरी तरफ चालीस...

1 comment:

  1. सार्थक प्रस्तुति,
    शुभकामनाएं .

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