Monday, October 10, 2011

सारे दरबारी मालामाल हो गए [कहानी-भाग २]

राजा ने कहना शुरू किया- मूर्खता का सम्मान करने की बात मैंने आप लोगों से इसलिए कही थी, कि मैं यह  चाहता था- आप लोग मूर्खता की पहचान करना सीखें.क्योंकि यदि व्यक्ति की किसी कमी को ठीक से पहचान लिया जाये तभी उसे दूर किया जा सकता है. 
राजा बोला- आपने चरवाहे को मूर्ख समझ लिया. हम पशुओं को चराते हैं, ताकि फिर उनका दूध निकाल सकें.चरवाहे ने सोचा, कि वह पशुओं को चरा कर,उनका दूध निकाल कर, अपना पेट भरेगा, क्यों न वह सीधे चारे से ही अपना पेट भर ले. यह मूर्खता नहीं थी, बल्कि चालाकी थी. पशुओं के प्रति लापरवाही थी. 
फल वाले को भी आपने मूर्ख समझ लिया. जो व्यक्ति अपने सारे फल आपको मुफ्त में देने को तैयार हो गया, वह ज़रुरत-मंद नहीं हो सकता. उसे दानी की जगह आपने मूर्ख मान लिया. 
दरबारी सर झुका कर बैठे रहे. राजा ने कहा- फिर भी मैं अपने वचन से हट नहीं रहा हूँ, आज से आप सबका वेतन  दोगुना. 
दरबारी प्रसन्न तो हुए, पर यह जान कर उनकी प्रसन्नता काफूर हो गई कि राजा मूर्खता के सम्मान का अपना वादा पूरा कर रहा है. 

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