Monday, October 31, 2011

इस तरह मुझे मदद करनी पड़ी उसकी

मैं उन दिनों मुंबई में था. प्रकाशजी पुणे में रहते थे. एक दिन हम कुछ मित्र  लोग फोर्ट एरिया में बैठे एक कार्यक्रम की रूपरेखा बना रहे थे.कार्यक्रम एक बैंक की जुबली मनाने के सन्दर्भ में था. 
प्रकाशजी के बारे में हमें सूचना मिली कि वे अगले सप्ताह मुंबई आने वाले हैं.मेरे एक मित्र ने कहा- क्यों न हम इस कार्यक्रम में चीफ-गेस्ट के रूप में प्रकाशजी को बुलाएँ?
प्रकाशजी खुद एक बैंक में रहे थे. संयोग से उसी बैंक में मैं भी कुछ समय रहा था. मित्र बोले- प्रकाशजी को हम यह बात बता कर याद दिलाएंगे तो वे ज़रूर कार्यक्रम में आने को तैयार हो जायेंगे. 
मैंने बैंक में संपर्क करके उनका प्रोग्राम पता लगाया तो मुझे यह जानकारी मिली कि वह केवल दो दिन के लिए ही आ रहे हैं. हमें उम्मीद हो गयी कि दो में से एक शाम वह हमें दे सकते हैं. हमने यह भी पता लगा लिया कि वह इन दो दिनों में मुंबई में कहाँ ठहरने वाले हैं. उनके एक निकट रिश्तेदार का पता भी हमें मिल गया. 
उनके रिश्तेदार से संपर्क करने पर पता चला कि वह ज़रूरी काम से मुंबई आ रहे हैं. दरअसल उनकी बिटिया की कोई परीक्षा थी जो दिलवाने के लिए ही वह आ रहे थे. 
प्रकाशजी के रिश्तेदार ने बताया कि वे इस दौरान न तो किसी से मिलेंगे और न ही किसी कार्यक्रम में शरीक होंगे, क्योंकि उनकी बेटी पढ़ने में बहुत होशियार है, और वह उसे टेस्ट से पहले बिलकुल भी डिस्टर्ब नहीं करना चाहते.
यह सुन कर हमने उन्हें इनवाइट करने का ख्याल छोड़ दिया. 
सुप्रसिद्ध बेडमिन्टन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोणे उन  दो दिनों  के दौरान किसी से नहीं मिले.और इस तरह डिस्टर्ब न करके हमने भी उनकी बिटिया दीपिका पादुकोणे की मदद की.      

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...