Thursday, November 17, 2011

काटजू, वैदिक और आम आदमी

पूर्व न्यायाधीश जस्टिस काटजू को सेवा निवृत्ति के बाद प्रेस परिषद् का अध्यक्ष बनाया गया है. उन्होंने पद सम्हालते ही कहा कि मीडिया अपने सरोकारों को ठीक से नहीं निभा रहा है अतः पत्रकारों को भी चंद  दिशा-निर्देशों के तहत काम करने की ज़रुरत है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ पत्रकार  वेद प्रताप वैदिक ने कहा कि देश के न्यायाधीश भी कौन से दूध के धुले हैं, वे भी तो समय-समय पर गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के दोषी पाए गए हैं.
ऐसे बयान और इन बयानों पर आने वाली प्रतिक्रियाओं को निगलने या उगलने से पहले हमें एक बात पर और ध्यान दे लेना चाहिए. हमारे देश में लगभग अस्सी प्रतिशत लोग, चाहे वे डाक्टर हों, पत्रकार हों, शिक्षक हों, व्यापारी हों, अफसर हों, कर्मचारी हों, इंजिनियर हों,वकील हों, या किसी और पेशे के लोग हों, वे अपनी मानसिकता में लगभग आमआदमी ही हैं. वे कमाने-खाने के हिमायती हैं. जीवन की आधारभूत ज़रूरतें इनकी आधारभूत ज़रूरतें हैं, चाहे वे सीमा में हों या असीमित.
लगभग दस प्रतिशत लोग औसत से अधिक अच्छी मानसिकता वाले हैं.
इसी तरह लगभग दस प्रतिशत लोग औसत से ख़राब मानसिकता वाले, सरके हुए लोग हैं.
अब जब किसी को भी, किसी के भी बारे में, कुछ भी कहना होता है, तो वह आराम से कह सकता है.
उसके पास अपनी बात सिद्ध करने के लिए हर तरह का उदाहरण मौजूद है. जब वह किसी की शान में कसीदे काढना चाहेगा, तो वह उस पेशे के अच्छे लोगों की मिसाल दे देगा.इसी तरह जब वह किसी की बखिया उधेड़नी चाहेगा तो उस पेशे के ख़राब लोगों की मिसाल दे देगा. इस तरह कहने वाला कुछ भी कहता रह कर कहता चला जायेगा और कहता चला जायेगा, आपमें जितना धैर्य हो सुन लें.    














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