Tuesday, February 14, 2012

देश-भक्ति के ज़ज्बे को कैसे परिभाषित किया जाये?

दिलीप कुमार का नाम कोई कम लोकप्रिय नहीं हैं. पिछले पचास सालों में आने वाले लगभग हर सफल अभिनेता से उनकी तुलना हुई. कई अभिनेताओं ने उनके लटके-झटकों की नक़ल भी की. अपने दौर की लगभग हर बड़ी नायिका ने उनके साथ काम किया. उन्हें ढेरों छोटे-बड़े पुरस्कार और सम्मान मिले. वे मुंबई महानगर के किसी समय शेरिफ भी रहे. लोकप्रिय अभिनेत्री सायराबानो से उनके सफल विवाह के बाद उनकी लोकप्रियता में और इजाफा ही हुआ.
अभी कुछ समय पहले यह खबर आई, कि पाकिस्तान में उनके पैतृक  मकान को वहां की सरकार ने सुरक्षित रख कर उसे स्मारक  घोषित करने का फैसला किया है. यह भी उनके और भारत-वासियों के लिए एक बड़ा सम्मान ही है. लेकिन इस खबर का भारत में जिस गर्म-जोशी से स्वागत होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. शायद बहुत से लोगों में तो यह ठंडापन व्याप गया कि अच्छा वे पाकिस्तान में पैदा हुए थे. बहुतों को यह शंका हो गई कि  उनके रिश्ते अभी तक पाकिस्तान से मधुर थे. बहुतों को यह अचरज हो रहा है कि उन्होंने पाकिस्तान बनते ही उस से मुंह फेर क्यों नहीं लिया था? वे वहां पैदा हुए तो क्या, उन पर तो सारा हक़ भारत का ही होना चाहिए.
देश-भक्ति का ज़ज्बा यही है तो कल शायद सोनियाजी की उपलब्धियों  पर हम इटली को भी खुश न होने दें?    

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