Wednesday, April 18, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 44 ]

     बूढ़ी महिला ने तो चुपचाप पेरिना को बाबा के दर्शन करवा देने चाहे थे, पर इस से इतना बखेड़ा खड़ा हो जायेगा, यह उसने न सोचा था. वह भी असहज हो गई, और उसने जल्दी-जल्दी किन्ज़ान-दंपत्ति को विदा किया. 
     लौटते समय पेरिना बहुत खुश थी. उसे यह भी याद न रहा कि कम से कम किन्ज़ान से ये तो पूछे कि उसकी मुख्य संतजी से मुलाकात में क्या हुआ. किन्ज़ान ने खुद ही उनसे मुलाकात का थोड़ा विवरण दिया. किन्ज़ान उनकी सम्पन्नता और विनम्रता से अच्छा-खासा प्रभावित था. संतजी ने उसके सपने के पूरा होने के बारे में यही कहा था कि वह यहाँ आता रहे, और उससे चौथी मुलाकात में वे यह बता देंगे कि किन्ज़ान नायग्रा-फाल्स को पार करने के अपने मकसद में कभी कामयाब होगा कि नहीं, और यदि होगा तो कैसे? उत्तेजित किन्ज़ान अब संतजी से दूसरी और तीसरी बार नहीं, बल्कि चौथी बार मिलने के बारे में ही सोच रहा था. 
     पेरिना की इच्छा अब किसी ज्वैलरी की दूकान में जाने की थी. किन्ज़ान उसे 'हनीमून' उपहार देने वाला था, और पेरिना के ज़ेहन में भारतीय पन्ने जगमगा रहे थे. वे न केवल पन्ने का कोई आभूषण लेना चाहती थी, बल्कि उनके बारे में जानना भी चाहती थी. उसके भीतर महिला-सुलभ वही प्रदर्शन-प्रियता पैठ चुकी थी कि वह अगली बार नार्वे की उस महिला से आश्रम में जब भी मिले, तो पन्नों का कीमती हार पहन कर ही मिले. इसे वह बाबा के प्रति सम्मान के रूप में देखती थी. 
     पेरिना ने पता लगा लिया कि पन्ना केवल कुछ ही देशों में पाया जाने वाला कीमती पत्थर है, जो भारत में सबसे ज्यादा मिलता है. शाम को जब किन्ज़ान ने डिनर के समय रंगीन मदिरा का ग्लास पेरिना को पेश किया तो पेरिना को उस चमकते शीशे के एक-एक कोण से बेश-कीमती  पन्ने चमकते दिखाई दिए.भोजन में जब साबुत बटेर शोरबे में रखा आया, तो उसकी खुली आँखों में पेरिना ने पन्ने ही जड़े देखे. 
     लेकिन ये तमाम चमक उस समय फीकी पड़ गई, जब देर रात होटल के खुशबूदार अहाते में झांकते, खिड़की का पर्दा फैलाते हुए  किन्ज़ान ने नाइट- लैम्प का स्विच ऑफ़ किया. खिड़की से झांकते आसमान के सैंकड़ों पन्ने उन दोनों को अकेला छोड़ कर परदे के पार रह गए. अँधेरे में पेरिना किसी मानसरोवर से मोती चुनने की मुहिम पर निकल गई.किन्ज़ान ने रात और नींद को सौतिया डाह में जलती दो पड़ोसनों की तरह लड़ता छोड़ दिया. न रात बीतती थी, न दिन उगता था. 
     उस रात संतजी के आश्रम में अपने कमरे में सोती बूढ़ी महिला को भी आसानी से नींद नहीं आई. वह सोचती रही, कि बाबा ने पेरिना के पति का 'पन्ना-पन्ना' कहते हुए  पीछा क्यों किया? वह बरसों से यहाँ थी, और थोड़ा बहुत यहाँ की गतिविधियों को समझती भी थी, पर मन ही मन वह समझ रही थी कि पेरिना वापस ज़रूर आएगी. और इसीलिए वह चाहती थी कि इस पहेली को किसी तरह सुलझा ले. पेरिना से उसे एक किस्म का लगाव सा भी हो गया था. नई-नई दुल्हन...हनीमून के अगले ही दिन अपने पति के साथ क्या सोच कर  यहाँ चली आई? भला बैराग के आश्रम में ऐसे युवा बच्चों का क्या काम? 
     बूढ़ी महिला किसी न किसी तरह उस पहेली को सुलझा लेना चाहती थी. उसका मन कहता था कि वह पेरिना की मदद करे, और यदि वह अकारण किसी मुसीबत में घिरने वाली है तो वह उसकी जानकारी कर पेरिना को पहले से सचेत करे. बाबा से महिलाओं का मिलना चाहे निषिद्ध हो...[जारी...]    

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