Monday, September 24, 2012

अच्छा या बुरा तय करने वाला कौन ?

   आजकल एक नया नज़ारा देखने को मिलता है। आसमान आपको बताने नीचे आता है कि  किस तारे की चमक कितनी? बल्कि कभी-कभी तो खुद सितारों की जुबां में आपसे कहलाया जाता है- मुझसे बढ़ कर कौन ? कुछ दूरदर्शी लोग, जैसे आमिर खान हमें पहले ही आगाह भी कर देते हैं कि  "तारे ज़मीन पर".
   यह रिवाज़ अच्छा है, क्योंकि इसमें माननीय न्यायाधीश की असली गरिमा झलकती है। माननीय न्यायाधीश माने आम जनता। आम जनता ही तो तय करती है कि  कौन सी फिल्म अच्छी और कौन सी निरर्थक। ऐसे में यदि फिल्मकार और सितारे जनता के बीच 'प्रोमो' या प्रचार के लिए जाते हैं तो इसमें बुरा क्या? सही अर्थों में इस प्रक्रिया से फ़िल्मकारी को 'कला' का दर्ज़ा मिलता है। कलाकार परदे पर आने से पहले जनता-जनार्दन का नमन करे! पहले सितारे आम-जनता के लिए एक 'तिलिस्म' हुआ करते थे। इसी भावना के चलते फ़िल्में एक आकाशी चीज़ हुआ करती थीं।
   सलमान खान हों या प्रियंका , करीना कैटरीना हों या ऋतिक, अगर आपसे रूबरू होकर कहेंगे कि  हमारी फिल्म आ रही है, देखने आना, तो देखने का मज़ा आएगा ही न! ये मजेदार शुरुआत नयी नहीं है, बरसों पहले घर में किसी मंगल-उत्सव का "बुलावा" इसी तरह घर-घर जाकर दिया जाता था।

2 comments:

  1. सबको अपनी बात कहने का हक है इसमे बुरी बात क्या है और देखना आपके अधिकार में है सो मत मानिये कहना .

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  2. Dhanywad, mera aashay kewal 'bulawe' ki pratha ke baare men nayi peedhee ko bataana tha.

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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