Saturday, October 20, 2012

करप्शन के मुद्दे पर मौसमी बयार का असर

इस शीर्षक पर किसी को भी यकीन नहीं आएगा। क्योंकि अब यह माना जाने लगा है कि  भ्रष्टाचार बेअसर है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता। बहस की कोई गुंजाइश नहीं है, यह ठीक ही है कि भ्रष्टाचार  के गैंडे  की खाल को छेदने वाली गोली कम से कम भारत में तो अभी नहीं ही बनी। फिर क्या करें? बात ख़त्म करदें?
नहीं, भ्रष्टाचार का जिस तरह कभी इलाज़ नहीं होगा, उसी तरह भ्रष्टाचार की बात कभी ख़त्म भी नहीं होगी। अब हमारे देश के अधिकाँश लोग भ्रष्टाचार की बात की जुगाली करते हुए दिन बिताएंगे।
प्राचीन काल में जब किसी शासक का कोई महल बनता था, तो उसके आस-पास कुछ-एक छोटे-मोटे महल-चौबारे, और भी बनते थे। इन सब के साथ तरह-तरह की कहानियां नत्थी हुआ करती थीं- मसलन, इसमें राजाजी की वो रानी रहती थीं, जिन्हें वे चाहते तो थे, पर उनसे शादी नहीं की थी।
इसमें उन महारानीजी का वास था, जिन्हें राजा ने जुए में जीत तो लिया था, पर इन्होने राजा के गले में वरमाला डालने से इनकार कर दिया था।
इसमें वो पटरानी जी रहती थीं,जो महाराज की जनम-जनम की अर्धांगिनी तो थीं, पर महाराज ने जीवन भर उनका घूंघट नहीं उठाया।
इसमें वो दासी रहती थी, जिसने राज्य के वारिस को जन्म दिया। आदि-आदि।
राजा-रानी का यही खेल अब सत्ता और शासक का खेल है!ये भ्रष्ट तो हैं, पर सत्ता के मौसम में सर-आँखों पर।हैं तो निकम्मे, पर बकने में माहिर हैं, लिहाज़ा पड़े रहने दो!

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