Monday, October 22, 2012

एक टोकरा-भर फल, और एक भी फीका नहीं- यश चोपड़ा

यश चोपड़ा भी चले गए। कुछ दिन बाद उनकी एक नई , ताज़ातरीन फिल्म रजतपट पर अवतरित होने वाली थी। लेकिन वे उसका घाटा-मुनाफा देखने नहीं ठहरे।
अपने लगाए पेड़ की छाँव और फल हर माली के नसीब में नहीं होते। लेकिन कुछ माली ऐसे ज़रूर होते हैं, जिनके लगाए पेड़ बरसों तक सबको छाँव देते हुए सबके दिल में उनकी याद को ताज़ा बनाए रखते हैं। यशजी ऐसे ही थे। उनकी सबसे बड़ी खासियत उच्च दर्जे का मनोरंजन शालीनता और सार्थकता के साथ देना रहती थी। पांच दशक तक कर्म-लीन  यशजी पर न कभी बोझिल उबाऊपन या अश्लीलता का आरोप लगा, और न ही सतही मनोरंजन का।
यशजी के निधन के समाचार ने जिस तरह हर छोटे-बड़े सितारे का रुख उनके घर की ओर  मोड़ा उस से उनकी मिलनसारिता का पता चलता है।
यदि किसी दूसरे जहाँ में मनोरंजन की किसी दुनिया का अस्तित्व है, तो यशजी आग की लपटों पर सवार होकर वहां पहुँच चुके होंगे। फिर भी उनकी नई फिल्म के सतरंगी उजाले हम जल्दी ही आने वाली दीवाली पर देखेंगे।     

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