Thursday, December 20, 2012

बुरा और अच्छा होने में काफी समानता है

यदि वास्तव में कल, अर्थात 21 दिसम्बर 2012 को सब कुछ समाप्त हो रहा है, तो भी हमारी आशाएं समाप्त नहीं हो जातीं। जो कुछ होगा वह हो, कोई इसमें क्या कर सकता है? लेकिन फिर भी, यदि सब कुछ ख़त्म होने के बाद, कभी दोबारा दुनिया आरम्भ होती है, तो उसमें कम से कम ऐसा तो न हो-
1,यदि कोई भी, कहीं भी,किसी भी कष्ट में हो, तो कोई भी ख़ुशी न मना रहा हो।
2.कोई भी किसी की मृत्यु, या प्राण-घातक आक्रमण का कारण न बने।
3.कोई भी अपने को किसी भी दूसरे से ज्यादा महत्वपूर्ण या प्रिय न समझे।
4. नई दुनिया में इतनी गणित सबको आती हो, कि  वह संसार में किसी भी चीज़ का अपना हिस्सा जान सके, और उस से कण भर भी अधिक लेना स्वीकार न करे।
मुझे लगता है कि  हम में से 90 प्रतिशत लोग यह सोचने लगे हैं कि  यदि नई  दुनिया में ऐसा ही नीरस, उबाऊ,बोझल जीवन हो, तो इस से अच्छा है कि  दुनिया दोबारा बने ही नहीं।
दुनिया तो ऐसी ही होनी चाहिए, जिसमें हम मन-मर्ज़ी से साम-दाम-दंड-भेद कमा सकें। दूसरे कैसे भी कष्ट में हों , हम तो मौज मना सकें, दूसरे चाहे भूखे मरें, हमारे भण्डार सदा भरे रहें, अपने सुखके लिए दूसरों का क़त्ल भी करना पड़े तो हमें कोई ऐतराज़ न हो।
लेकिन सोचिये, यदि ऐसी ही दुनिया दोबारा बनानी हो, तो इसी को क्यों न रहने दिया जाए। ईश्वर भी बिना बात के परिवर्तन की ज़हमत क्यों उठाएगा? इसलिए आशा यही है कि कल कुछ नहीं होगा।हम और हमारी दुनिया, ऐसे ही रहेंगे, बदस्तूर!   

3 comments:

  1. आपने जिस तरह की दुनियाँ की कल्पना की है वह शायद ही संभव हो, लेकिन आज जो हालात हैं उन्हें देखते हुए तो मुझे लगता है कि दुनिया दुबारा ना ही बने तो अच्छा है।

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  2. Shukriya kaise kahoon, aapne yah bahut maayusi me kaha hai. Yakeenan aaj haalaat aise hi hain, par ye chunauti hame leni hogi ki ham haalaat badal bhi n payen, to iske liye koshish zaroor karte rahen.

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