Monday, January 7, 2013

सुहावने ढोल

जब ढोल बजता है तो तरह-तरह की प्रतिक्रिया होती है। कोई कहता है कि माहौल जीवंत हो उठा, कोई कहता है आसमान सिर पर उठा लिया।  कोई कहता है, कानफोडू शोर हो रहा है, तो कोई कहता है, ज़रा जोर लगाके।
"सुहावना"ढोल उसे कहा जाता है जो ज़रा दूर बजे। इसी से मुहावरा है- "दूर के ढोल सुहावने।"
पिछले दिनों एक बेहद सुहावना ढोल बजा। जब ढोल सुहावना था, तो ज़ाहिर है कि  वह बेहद दूर का भी रहा होगा। दूर का ही नहीं, बहुत-बहुत दूर का।
क्या आप जानते हैं, यह कितनी दूर का था?
यह था, मंगल ग्रह का।
मंगल ग्रह पर चट्टानों के बीच एक फूल दिखाई दिया। वह भी खिला हुआ।
अब आप कहेंगे कि  फूल खिलने से ढोल का क्या सम्बन्ध?
सम्बन्ध है। मंगल ग्रह  से यहाँ न तो कोई रेल आती है, न कोई बस, या हवाई जहाज, इसलिए वहां से कोई अखबार भी यहाँ नहीं आता है। न ही कोई टीवी चैनल वहां से ख़बरें लाता है।लेकिन फिर भी वहां फूल खिला, ये शोर तो यहाँ हो ही गया न? वो फूल बहुत सुन्दर भी है और बहुत दूर भी, इसलिए हम तक ये खबर कोई सुहावना ढोल ही तो लाया होगा? ढोल कहीं भी खुद नहीं आता-जाता। केवल उसकी आवाज़ जाती है।       

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