Monday, January 7, 2013

संबंधों पर भी गिरती है बर्फ

अभी एक सप्ताह पहले ही सब मित्रों और परिजनों के संदेशों का आदान-प्रदान हुआ था। नव वर्ष की शुभकामनायें ली और दी गई थीं।
लेकिन पिछले दो-चार दिनों से ऐसा लग रहा है, जैसे सब लोग न जाने कहाँ चले गए। न किसी का फोन आ रहा है, और न ही कोई मिलने आ रहा है। यहाँ तक कि रोज़ मिलने-जुलने वाले कामकाजी लोग भी, ऐसा लगता है जैसे किसी दूसरे शहर में चले गए हों।
ये सब मौसम का नतीजा है। संबंधों और मित्रता पर भी ओस, बर्फ गिरती है। घने कोहरे में मन अकेले-अकेले हो जाते हैं, और दिन गिन-गिन कर ये ठिठुरते दिन बीतने का इंतज़ार करते हैं। लम्बी सर्द रात ये कल्पना ही नहीं होने देती कि  इसी धरती पर कभी वसंत आता है, फागुन आता है, और जेठ की दोपहरी तपती है।
पूरा एक सप्ताह भी बाकी नहीं है मकर संक्रांति में। आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें दिखने लगी हैं। बच्चे, किशोर और युवा आकाश पर हस्ताक्षर करने की मुहिम में लग गए हैं। उनके हाथों में पतंगों की डोर है, उसी से वे ओस,कोहरे और धुंध को काट देते हैं। जो कंपकपी बड़े-बुजुर्गों को दहलाती है, वही इन युवाओं से खुद कांपती है। युवा न हों, तो सब बर्फ में दबा सिमटा पड़ा रहे।
इस मौसम में तो शेर से भी ज्यादा बहादुर नज़र आती हैं मछलियाँ। गर्मियों में गर्म पानी में और ठण्ड में ठन्डे पानी में।    

2 comments:

  1. सही कहा आपने , लगता तो यही है कि मछलियाँ ही ज्यादा बहादुर हैं |

    सादर

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