Sunday, November 17, 2013

जिसका असबाब बिना बिका रह जाए वो सौदागर कैसा?

फेसबुक पर टहलते हुए आज एक विचार देखा।  कुछ लोग कह रहे थे कि क्या भारत में अब तक कोई साहित्यकार "भारत रत्न" हुआ है?
वैसे तो "डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया" जैसे ग्रन्थ लिखने वाले नेहरूजी को साहित्यकार की श्रेणी में भी माना ही जाना चाहिए,वैज्ञानिक व दार्शनिक साहित्य डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और ए पी जे अब्दुल कलाम साहब का भी उच्च कोटि का है, मगर यहाँ शायद बात हिंदी के उन रचनाकारों की  है, जो खालिस साहित्यकार के तौर पर ही प्रतिष्ठित हैं।  प्रेमचंद और शरतचंद्र जैसे।
लोग सचिन को "भारत रत्न" मिलने पर अन्य खेलों के स्टार खिलाड़ियों को भी याद कर रहे हैं। मिल्खा सिंह का नाम सबसे ऊपर दिखा।  राजनीति के मैली सोच के कुछ खिलाड़ी लताजी की  उपलब्धि को भी विवादास्पद बना देने पर आमादा हैं।
यहाँ एक बात की  अनदेखी नहीं की जा सकती।  सचिन या दूसरे क्रिकेटरों ने आज क्रिकेट को कहाँ पहुंचा दिया? मैच के दिनों में बच्चों से बूढ़ों तक टीवी से चिपके या स्कोर पूछते देखे जा सकते हैं।  यह कसौटी साहित्य पर लागू करके देखें, शायद कुछ स्थिति साफ़ हो।
हाँ,यह कसौटी अंतिम नहीं है।
रत्नों के इस खनन ने कई गुल खिलाए हैं।         

5 comments:

  1. विचारणीय पोस्ट है....

    आभार
    अनु

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  2. प्रश्न उठते ही हैं कि इन पुरस्कारों का क्रिटेरिया क्या है...

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  3. Sattadheeshon ki muskaan ko gaur se dekhiye, shayad kuchh andaaz lage.Aabhaar!

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