Saturday, May 10, 2014

सिलेबस-ए और सिलेबस-बी

कल कुछ युवा मुझसे पूछने लगे कि सत्र खत्म होते ही अब उन्हें अपना कैरियर चुनने की फ़िक्र होने लगी है। स्कूली पढ़ाई पूरी कर चुके ये बच्चे चाहते थे कि उन्हेँ "मीडिया" के बारे में संभावनाएं बताई जायँ।
वे रेडिओ पर मेरा इंटरव्यू सुन कर मेरे पास आये थे।
मैंने उनसे कहा कि उनकी छुट्टियाँ अभी-अभी शुरु हुईं हैं, इसलिए इन सब बातों पर सोचना जल्दबाज़ी है। उन्हें मैंने कुछ समय बाद आने के लिये कहा, साथ ही उन्हें छुट्टियों का आनंद लेने के लिये भी कहा।
दरअसल मैं उनसे कुछ कहने के पहले थोड़ा सोचना चाहता था।
वास्तव में "मीडिया"अब दो तरह का है।
एक में आपको किसी तैयारी क़ी ज़रूरत नहीं है, शोहरत,पैसे,काम आपको मिलते चले जाते हैं, बस काम पर जाते समय आपको "पंचतंत्र के बन्दर" की तरह "मगर" से मिलने जाते समय अपना कलेजा पेड़ पर टाँग कर जाना पड़ता है।
दूसरे सिलेबस में दुनिया भर की तैयारी चाहिए, उसकी बात हम तब करेँगे, जब बच्चे छुट्टियों से लौट आएं।               

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...