Tuesday, May 27, 2014

स्पीकिंग बॉक्सेज़ अर्थात बोलते डिब्बे

बरसों तक एकांत में अकेले मेहनत करते हुए एक वैज्ञानिक ने अपने अनुसन्धान से एक ऐसा यन्त्र बना लिया, जिसे यदि किसी भी वस्तु पर चिपका दिया जाये तो वह बोलने लगती थी।
अपनी खोज से संतुष्ट होकर वैज्ञानिक बैठा सोचने लगा कि इसे कहाँ लगा कर प्रयोग किया जाए।
उसने कुछ दूरी पर एक खेत पर काम करते हुए कुछ लोग देखे, वह उसी ओर  बढ़ चला।
वहां जाकर उसने देखा, एक शानदार फार्महाउस के सामने पेड़ की छाँव में बिछे तख़्त पर खेत का मालिक बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा है।  और सामने कुछ दूरी पर तेज़ धूप की गर्मी में दो लड़के पसीना बहाते हुए काम में जुटे हैं। वैज्ञानिक कुछ दूरी पर खेत के किनारे खड़ा होकर नज़ारा देखने लगा।  उसने खेत के मालिक को, और काम करते लड़कों ने उसे, दूर से इशारों में ही अभिवादन भी किया।
कुछ देर बाद मालिक ने कहा- "अरे चलो, खाने का समय हो गया है, खाना खालो।"
संयोग देखिये, कि जिस पेड़ के नीचे वैज्ञानिक इतनी देर से खड़ा था, उसी पर खाने के दो टिफ़िन बॉक्स टंगे थे। मालिक की बात सुनते ही वैज्ञानिक ने दोनों बॉक्स पेड़ से उतारे और आगे बढ़ कर एक मालिक को और दूसरा उन दोनों लड़कों को पकड़ा दिया।  सभी कृतज्ञता से वैज्ञानिक की ओर  देखने लगे।
मालिक ने तख़्त पर एक ओर खिसकते हुए वैज्ञानिक से कहा- "आइये महाशय, आप भी मेरे साथ भोजन कीजिये।"
मालिक ने खाते-खाते वैज्ञानिक से सवाल किया- "एक बात बताइये महाशय, ये दोनों बॉक्स बाहर से देखने में बिलकुल एक से  हैं, वज़न भी बराबर है, फिरभी आपने बिलकुल ठीक कैसे पहचान लिया कि कौन सा मेरा है, और कौन सा मेरे श्रमिकों का, जबकि अंदर इनमें अलग-अलग किस्म का खाना है ?"
वैज्ञानिक ने कहा-"मुझे आपके डिब्बों ने बताया, मैं खड़ा-खड़ा इनकी बातें सुन रहा था। एक बॉक्स कह रहा था-चलो, थोड़ी ही देर में मेरा भोजन तो रक्त-प्राण बन कर रग़ों में बहने वाला है, जबकि दूसरे बॉक्स से आवाज़ आ रही थी- चलो भैया, पेट में बदबूदार लुगदी बन कर सुबह तक पड़े रहना, और लोगों के प्राण पीना।"
मालिक के गले में कौर अटकने सा लगा, वह पानी की बोतल की ओर झुक गया।
                      

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