Friday, February 13, 2015

महिलाओं का सम्मान

महिलाओं का सम्मान दो तरह से होता है।
एक,जब पुरुष कहीं भी हो, उसके साथ उसकी वामा भी हो।  वह श्रृंगार से विभूषित हो। पुरुष से कहीं महंगे वस्त्र पहने हुए हो। गहने-आभूषणों से सज्जित हो। जब पुरुष कुछ कहे तो वह मुस्काये, पुरुष कुछ सोचे तो वह उकताए। पुरुष जो कमाए, वह उसके बटुए में आये, पुरुष जो खर्चे, वह उसकी अँगुलियों से गिना जाकर जाये।पुरुष के किसी भी निर्णय पर वह आँखें झुका ले, उसके किसी भी निर्णय पर पुरुष आँखें तरेरे।
दूसरा सम्मान वह होता है, जहाँ पुरुष हो न हो, वह हो। वह जो कहे पुरुष सुनें। वह जो सलाह दे,पुरुष उसे मानें। दोनों परस्पर परामर्श करें या न करें, महिला के निर्णय को पुरुष क्रियान्वित करने के लिए प्रयासरत हो।
भारत की राजधानी के पिछले दिनों हुए चुनावों में "महिला सम्मान" भी एक मुद्दा था।
ये चुनाव कई अर्थों में विलक्षण थे। इसमें लोकतंत्र ने कई चमत्कार किये।  सोनियाजी की पार्टी खाता नहीं खोल पाई। शीलाजी की किसी ने नहीं सुनी। सुषमाजी की बात को तवज्जो नहीं दी गयी,उन्हें बाहर भेज दिया गया । किरणजी को वोट नहीं दिए गए। कुछ वामाओं को टिकट, तो कुछ को मंत्री-पद नहीं दिए गए।
दिल्ली में सैंकड़ों सुल्तानों के बाद एक रज़िया होती है
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है                    

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 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...