Monday, November 30, 2015

क्या हमें अपने से भी ज़्यादा भरोसा पाकिस्तान पर है?

भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी आपस में मैच खेलें या नहीं?
इन दोनों देशों के बीच संभावित खेल को लेकर हमारा देश एक मत नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि खेल हो, और राजनीति या कूटनीति को खेल के मैदान से दूर रखा जाये।  जबकि कुछ लोग सोचते हैं कि यदि पाकिस्तान भारत के साथ दुश्मनी का व्यवहार करता है तो उसके साथ खेलने का क्या औचित्य? वहीं ऐसा विचार रखने वाले कुछ लोग भी हैं कि आज की दुश्मनी को मिटाने की जब कूटनीतिक कोशिशें हो रही हैं तो सौहार्द्र की एक कोशिश खेल के जरिये भी क्यों नहीं? खिलाड़ियों और खेल- प्रेमियों की राय यह है कि देशों की सरहद बांटना हुक्मरानों का काम है, मानवीय आधार पर खेल की भावना तो बनी ही रहे।
तात्पर्य यह है कि एक ही मुद्दे पर हम अलग-अलग राय रखते हैं और अपने-अपने हिसाब से एक्शन चाहते हैं।
तो क्या पाकिस्तान को हम एड़ी से चोटी तक "एक" ही मानते हैं? क्या वहां सत्ता, विपक्ष, अवाम, खेल प्रशासन और खिलाड़ी,सबका हम परस्पर जुड़ाव या एकजुटता मानते हैं?
क्या हमारे यहाँ जो सत्ता कहती है, विपक्ष, जनता, खेलसंघ, खिलाड़ी और खेलप्रेमी वही करते हैं?
यहाँ तो आधे से ज्यादा लोग ये शपथ खाए बैठे हैं कि जो केंद्र सरकार करे, उसका उल्टा बोलना है !चाहे वह जनता के स्पष्ट बहुमत से चुनी हुई बिना किसी जोड़गांठ, उठा-पटक,खींचतान वाली सरकार हो।
आखिर साठ साल तक खाया हुआ नमक भी तो कुछ वजन रखता है?  

     

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